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मार्च 12, 2014

रंगीन आखर



स्याही सी है ज़िन्दगी
लिखती मिटाती उकेरती
कुछ भी ये कह जाती
कागज़ों पर बसती ज़िन्दगी

रंगीन सपनों को कहती
सुख-दुःख में है उलझाती
पाती या फिर हो फ़साना
सुलझाती है ये ज़िन्दगी

सादा कागज़ सा ये मन
उस पर  ये रंगीन आखर
जाने क्यों नहीं छिपता है
बयाँ हो जाती ज़िंदगी

अफ़साने कितने अधूरे
अनसुने राज़ गहरे
आइना है ये कागज़
आखर बनके ये उभरे

3 टिप्‍पणियां:

  1. बयां कर दी ज़िंदगी की सारी दास्तान खूबसूरती से अच्छी कविता बधाई

    जवाब देंहटाएं
  2. सादा काग़ज़ सा ये मन उस पर ये रंगीन आखर
    जाने क्यों नहीं छिपता है बयॉ हो जाती ज़िन्दगी
    अति सुंदर

    जवाब देंहटाएं
  3. सादा काग़ज़ सा ये मन उस पर ये रंगीन आखर
    जाने क्यों नहीं छिपता है बयॉ हो जाती ज़िन्दगी
    अति सुंदर

    जवाब देंहटाएं

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