स्याही सी है ज़िन्दगी
लिखती मिटाती उकेरती कुछ भी ये कह जाती कागज़ों पर बसती ज़िन्दगी रंगीन सपनों को कहती सुख-दुःख में है उलझाती पाती या फिर हो फ़साना सुलझाती है ये ज़िन्दगी सादा कागज़ सा ये मन उस पर ये रंगीन आखर जाने क्यों नहीं छिपता है बयाँ हो जाती ज़िंदगी अफ़साने कितने अधूरे अनसुने राज़ गहरे आइना है ये कागज़ आखर बनके ये उभरे |
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मार्च 12, 2014
रंगीन आखर
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कदम से कदम मिलाकर देख लिया आसान नहीं है तेरे साथ चलना तुझे अपनी तलाश है मुझे अपनी मुश्किल है दो मुख़्तलिफ़ का साथ रहना यूँ तो तू दरिया और ...
बयां कर दी ज़िंदगी की सारी दास्तान खूबसूरती से अच्छी कविता बधाई
जवाब देंहटाएंसादा काग़ज़ सा ये मन उस पर ये रंगीन आखर
जवाब देंहटाएंजाने क्यों नहीं छिपता है बयॉ हो जाती ज़िन्दगी
अति सुंदर
सादा काग़ज़ सा ये मन उस पर ये रंगीन आखर
जवाब देंहटाएंजाने क्यों नहीं छिपता है बयॉ हो जाती ज़िन्दगी
अति सुंदर