ईश्वरीय प्रेम। …।
जग में है सब अपने
मुक्ताकाश , पंछी , सपने
सुगन्धित धरती ,निर्झर झरने
आह्लादित तन मन
प्रेमदान का स्वर्गीय आनंद।।
प्रकृति चित्रण। ………
धरा,सरिता,औ' नील गगन
प्रस्फुटित पुष्प,वसंत आवागमन,
दारुण ग्रीष्म,शीत,और हेमंत
खग कलरव - गुंजायमान दिक्-दिगंत,
प्रकृति से परिपूर्णता का आनंद।।
प्रेम की विसंगतियां .......
जनमानस से परिपूर्ण इस जग में
एकाकीत्व का आभास रग - रग में
रहता है ये आतुर मन प्रतीक्षारत
एकाकीत्व लगे अपना सा ।
|
---|
फ़ॉलोअर
फ़रवरी 27, 2014
विविधा
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
-
हमने रखे हैं नक्शे पा आसमां के ज़मीं पर अब ज़मीं को आसमां बनने में देर न लगेगी टांग आयी हूँ सारे ग़म दरो दीवार के खूंटी पर अब वफ़ाओं...
-
तूने दिखाया था जहां ए हुस्न मगर मेरे जहाँ ए हक़ीक़त में हुस्न ये बिखर गया चलना पड़ा मुझे इस कदर यहाँ वहाँ गिनने वालों से पाँव का छाला न गिना गय...
-
कदम से कदम मिलाकर देख लिया आसान नहीं है तेरे साथ चलना तुझे अपनी तलाश है मुझे अपनी मुश्किल है दो मुख़्तलिफ़ का साथ रहना यूँ तो तू दरिया और ...
महाशिवरात्रि की हार्दिक बधाई और शुभकामनायें |
जवाब देंहटाएंNew post तुम कौन हो ?
new post उम्मीदवार का चयन
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर .....
जवाब देंहटाएंशिवरात्रि के पावन अवसर पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंअच्छी कविता , शब्दों का चयन भी अच्छा , भाव प्रवण भी
जवाब देंहटाएंशिवरात्रि के पावनपर्व पर हार्दिक शुभकामनायें...!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब,सुंदर रचना...!
RECENT POST - फागुन की शाम.
बहुत सुंदर ..
जवाब देंहटाएं