याद है वो दिन बारिश के ?
जब भी निकले- छाते को बंद कर -
लटकाए से घूमा करते थे -
भींगना था पर पानी में ही नही ,
तुम्हारे साथ बीते हुए पलों के
बौछारों में -
सनसनाती हवाएं , सोंधी सी
मिटटी की खुशबू , बताये देती थी ,
मौसम भींगा है -
बहुत देर तक - चुपचाप-जाते हुए
लम्हों को देखा करते थे - कोशिश थी -
पकड़ने की-
वक्त अपने वक्त के हिसाब से -
वक्त दिखाकर चला गया-हम लम्हों -
को ढूँढ़ते रह गए -
रास्ते अब भी वहीं है -
बारिश के दिनों में भींगती हुई -
बस दो हाथ अलग हुए ॥
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