छुईमुई सी लम्हें
खुश्बू से भरी वो यादें
तेरे आने की आहट
वो झूठ मूठ के वादे
छुप-छुपके पीछे आना
हाथों से आँखें ढकना
पकडे जाने के डर से
दीवारों में छुप जाना
तेरे खातिर जो दिल ये
डोल -डोल फिरता था
तुझसे ही जाने क्यों ये
मुझको छिपाए फिरता था
तेरे खातिर जो दिल ये
डोल -डोल फिरता था
तुझसे ही जाने क्यों ये
मुझको छिपाए फिरता था
वो आँखें ढूंढती सी
जो मुझपे ही फ़िदा थी
पर तुम न जान पायी
मुझे जान से वो प्यारी थी
धीरे से सामने आना
आकर सीने से लिपटना
लम्हों से गुज़ारिश थी ये
धीरे धीरे सरकना
यादों के बज़्म से ये
कुछ चित्र बनाया मैंने
पर लम्हों की फितरत है
उसे छू न सका किसी ने
कैसे समझाऊँ दिल को
लहूलुहान है ये
वो अतीत के पल जो
सूई चुभो जाती है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें