आँखों में उतरी वो ऐसे
मानो कोई सपना है वो
नींदे भर लायी हो जैसे
पल-पल सपना हर पल अपना
क्या है हकीक़त क्या है अपना
सब कुछ जैसे छुई -मुई
रात ढल न जाए ऐसे
जब भी मैंने आँखें मूंदे
चाँद की आह्ट सी आई
मंथर गति समय ये गुजरे
दिन के जैसे रात भी गयी
प्रातः स्नात सम ये सूरज
धीरे-धीरे नभ में फैला
स्याह रात बन गयी कहानी
लो पूरब से सूरज निकला
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