मन कोयला बन जल राख हुई
धूआं उठा जब इस दिल से
तेरा ही नाम लिखा फिर भी
हवा ने , बड़े जतन से
तेरी याद मन के कोने से
रह-रह कर दिल को भर जाए
जिन आँखों में बसते थे तुम
उन आँखों को रुला जाए
जाने क्यों दिल की बस्ती में
है आग लगी ,दिल जाने ना,
अंतस पीड़ा की ज्वाला भी
जलता जाए बुझ पाए ना
नितांत अकेला सा ये दिल
शब्दों से भी छला जाए
टूट कर बिखरे पल ये
हाथों से क्यों छूटा जाए ?
सौगात -ए - ग़म न माँगा था
इश्क़-ए -दुनिया के दामन से
जो भी मिला सर आँखों पर
कुछ इस मन से कुछ उस मन से
धूआं उठा जब इस दिल से
तेरा ही नाम लिखा फिर भी
हवा ने , बड़े जतन से
तेरी याद मन के कोने से
रह-रह कर दिल को भर जाए
जिन आँखों में बसते थे तुम
उन आँखों को रुला जाए
जाने क्यों दिल की बस्ती में
है आग लगी ,दिल जाने ना,
अंतस पीड़ा की ज्वाला भी
जलता जाए बुझ पाए ना
नितांत अकेला सा ये दिल
शब्दों से भी छला जाए
टूट कर बिखरे पल ये
हाथों से क्यों छूटा जाए ?
सौगात -ए - ग़म न माँगा था
इश्क़-ए -दुनिया के दामन से
जो भी मिला सर आँखों पर
कुछ इस मन से कुछ उस मन से
आपकी इस अभिव्यक्ति की चर्चा कल रविवार (13-04-2014) को ''जागरूक हैं, फिर इतना ज़ुल्म क्यों ?'' (चर्चा मंच-1581) पर भी होगी!
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर…
सुंदर !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया...
जवाब देंहटाएंभावपूर्ण एवं आत्मीय सी प्रस्तुति ! शुभकामनायें !
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