दूर चली जाती हूँ
मै नारी हूँ ....
अस्मिता को बचाते हुए
धरती में समा जाती हूँ
माँ- बहन इन शब्दों में
ये कैसा कटुता
है भर गया
इन शब्दों में अपशब्दों के
बोझ ढोते जाती हूँ
पत्नी-बहू के रिश्तो में
उलझती चली जाती हूँ
अपने अस्तित्व को ढूँढती हुई
दूर चली जाती हूँ
अपने गर्भ से जिस संतान को
मैंने है जन्म दिया
अपनी इच्छाओं की आहुति देकर
जिसकी कामनाओं को पूर्ण किया
आज उस संतान के समक्ष
विवश हुई जाती हूँ
अपने अस्तित्व को ढूँढती हुई
दूर चली जाती हूँ
नारी हूँ पर अबला नही
सृष्टि की जननी हूँ मै
पर इस मन का क्या करूँ
अपने से उत्पन्न सृष्टि के सम्मुख
अस्तित्व छोडती जाती हूँ
आज उस संतान के समक्ष
जवाब देंहटाएंविवश हुई जाती हूँ
नारी मन का भावपुर्ण चित्रण
शुभकामनायें
नारी हूँ पर अबला नही
जवाब देंहटाएंसृष्टि की जननी हूँ मै
bahut khub
nari ke dil ka har yehsas jagati hue
aapki ye kavita
....
aabhar
नारी हूँ पर अबला नही
जवाब देंहटाएंसृष्टि की जननी हूँ मै
भावपुर्ण चित्रण
शुभकामनायें
अच्छी रचना !
जवाब देंहटाएंमैने भी आज की नारी पर लिखा है ,देखिये और बतायें कैसा लगा ।
प्रतीक्षा है उस दिन की जब नारी अस्तित्व तलाश ले।
जवाब देंहटाएंआप के ब्लाग पर इधर उधर इतनी चीजें टंगी हैं कि कविता उन के बीच खो सी जाती है।
बहुत सही. भावनात्मक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंदुनाली पर स्वागत है-
ओसामा की मौत और सियासत पर तीखा-तड़का
सुन्दर भाव ....हार्दिक बधाई ...
जवाब देंहटाएंnari ka dard nari hi jane
जवाब देंहटाएंbahut sunder dil ko chhoo lana wala
bhasha ki suddhta aor sachchai ko isparsh karti bhav purna kavita par hardik badhai
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