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जनवरी 12, 2011

मै नारी हूँ ..

अपने अस्तित्व  को ढूँढती हुई
दूर चली जाती हूँ 
मै नारी हूँ ....
अस्मिता को बचाते  हुए 
धरती में समा जाती हूँ 
माँ- बहन इन शब्दों में 
ये कैसा कटुता 
है भर गया 
इन शब्दों में अपशब्दों के 
बोझ ढोते जाती हूँ 
पत्नी-बहू के रिश्तो में 
उलझती चली जाती हूँ 
अपने अस्तित्व  को ढूँढती हुई
दूर चली जाती हूँ 
अपने गर्भ से जिस संतान को 
मैंने है जन्म दिया 
अपनी इच्छाओं की आहुति देकर 
जिसकी कामनाओं को पूर्ण किया 
आज उस संतान के समक्ष 
विवश हुई जाती हूँ 
अपने अस्तित्व  को ढूँढती हुई
दूर चली जाती हूँ 
नारी हूँ पर अबला नही 
सृष्टि की जननी हूँ मै 
पर इस मन का क्या करूँ 
अपने से उत्पन्न सृष्टि के सम्मुख 
अस्तित्व छोडती जाती हूँ 

9 टिप्‍पणियां:

  1. आज उस संतान के समक्ष
    विवश हुई जाती हूँ

    नारी मन का भावपुर्ण चित्रण
    शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं
  2. नारी हूँ पर अबला नही
    सृष्टि की जननी हूँ मै
    bahut khub
    nari ke dil ka har yehsas jagati hue
    aapki ye kavita
    ....
    aabhar

    जवाब देंहटाएं
  3. नारी हूँ पर अबला नही
    सृष्टि की जननी हूँ मै
    भावपुर्ण चित्रण
    शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं
  4. अच्छी रचना !
    मैने भी आज की नारी पर लिखा है ,देखिये और बतायें कैसा लगा ।

    जवाब देंहटाएं
  5. प्रतीक्षा है उस दिन की जब नारी अस्तित्व तलाश ले।
    आप के ब्लाग पर इधर उधर इतनी चीजें टंगी हैं कि कविता उन के बीच खो सी जाती है।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सही. भावनात्मक प्रस्तुति

    दुनाली पर स्वागत है-
    ओसामा की मौत और सियासत पर तीखा-तड़का

    जवाब देंहटाएं
  7. nari ka dard nari hi jane
    bahut sunder dil ko chhoo lana wala

    जवाब देंहटाएं
  8. bhasha ki suddhta aor sachchai ko isparsh karti bhav purna kavita par hardik badhai

    जवाब देंहटाएं

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