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यारा लगा मन फकीरी में
न डर खोने का
न खुशी कुछ पाने का
ये जहां है अपना
बीते न दिन गरीबी में
यारा लगा मन फकीरी में
जब से लागी लगन उस रब से
मन बैरागी सा हो गया
पथ-पथ घूमूं ढूंडू पिया को
ये फकीरा काफ़िर बन गया
मन फकीरा ये जान न पाए
आखिर उसे जाना है कहाँ
रब दे वास्ते ढूंडन लागी
रास्ता-रास्ता गलियाँ-गलियाँ
क्या करूँ कुछ समझ न आये
उस रब दे मिलने के वास्ते
ढूँढ लिया सब ठौर-ठिकाने
गली,कूचे और रास्ते
जाने कब जुड़ेगा नाता
और ये फकीर तर जावेगा
सूख गयी आँखे ये देखन वास्ते
रब ये मिलन कब करवावेगा
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यारा लगा मन फकीरी में
जवाब देंहटाएंन डर खोने का
न खुशी कुछ पाने का
ये जहां है अपना
बीते न दिन गरीबी में
kya baat kah di....sab aisa sochne lage to fir to duniya hi badal jayegi...
bahut khub!!
अति सुन्दर,
जवाब देंहटाएंरब को पाना ही इस नश्वर शरीर का उद्देश्य होना चाहिए
बधाई
बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंजब से लागी लगन उस रब से
जवाब देंहटाएंमन बैरागी सा हो गया
पथ-पथ घूमूं ढूंडू पिया को
ये फकीरा काफ़िर बन गया
अना जी, गहरे भाव है कविता में ......सुंदर प्रस्तुति.
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bahut sunder kavita hai aapki
जवाब देंहटाएंmai aapko follow kar rhi hu
kabhi yaha bhi aaye
www.deepti09sharma.blogspot.com
सूफी रंग में रंगी एक शानदार कविता।
जवाब देंहटाएं---------
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