हमने तो आलने में दिए है जलाए
ये फिर आँखों से धुआं क्यों उठा
हमने तो बागों में फूल है खिलाये
ये फिर फूलों का रंग क्यों उड़ा
जागते हम रात से सुबह तलक
फिर भी नींद का खुमार क्यों न चढ़ा
रैन तो रात भर जलता रहा
पर नैनो ने रात भर ख्वाब न बुना
हम तो तारों पर है चलते रहे
चुभते हुए पैरों को सहते रहे
अपने इन हाथों से सपनो को बुना
फिर भी जामा ख्वाब का पहना नपाया
जिन्दगी गर्दिश में बने रहेंगे
ऐसे तो हमने दाने नहीं बोये
पता है जिन्दगी संवर जायेगी
ऐसा कुछ हमने यथार्थ में है पिरोया
जिन्दगी गर्दिश में बने रहेंगे
जवाब देंहटाएंऐसे तो हमने दाने नहीं बोये
पता है जिन्दगी संवर जायेगी
ऐसा कुछ हमने यथार्थ में है पिरोया
....अच्छे का परिणाम अच्छा होता ही है ..भले ही हम विपरीत परस्थितियों में लड़खड़ाने लगते हैं लेकिन तभी तो खुद चलना सीखते हैं......यथार्थ का धरातल बहुत कठोर है....जितनी जल्दी समझ ले इंसान उतना अच्छा ..
बहुत अच्छी रचना ...
जिन्दगी के संवरने की आस जगाती सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंहमने तो आलने में दिए है जलाए
जवाब देंहटाएंये फिर आँखों से धुआं क्यों उठा
हमने तो बागों में फूल है खिलाये
ये फिर फूलों का रंग क्यों उड़ा
हरेक पंक्ति दिल को छू जाती है..अपनी इच्छा के अनुसार परिणाम कहाँ मिलता है..बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति
बहुत सुन्दर रचना, शुभकामनाये
जवाब देंहटाएंजागते हम रात से सुबह तलक
जवाब देंहटाएंफिर भी नींद का खुमार क्यों न चढ़ा
रैन तो रात भर जलता रहा
पर नैनो ने रात भर ख्वाब न बुना
khubsurat yehsas
...
दिल को छु गयी आपकी कहानी .
जवाब देंहटाएंआपको और आपके परिवार को मकर संक्रांति के पर्व की ढेरों शुभकामनाएँ !"
बहुत सुंदर कविता।
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