ज़िंदा थे तो किसी ने पास भी नही बिठाया
अब सब पास बैठे जा रहे थे
पहले किसी ने रुमाल भी नही दिया
अब कपडे ओढाये जा रहे थे
सबको पता है अब उनके काम के नही हम
फिर भी बेचारे दुनियादारी निभाये जा रहे थे
ज़िंदा थे तो किसी ने कदर नही की
अब मुझमे घी डाले जा रहे थे
ज़िंदगी में एक कदम साथ नही चला कोई
अब फूलो से सजा के कंधे पर ले जा रहे थे
अब पता चला मौत कितनी बेहतर है ज़िंदगी से
हम तो यूं ही जिए जा रहे थे
-----------------अज्ञात
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हमने रखे हैं नक्शे पा आसमां के ज़मीं पर अब ज़मीं को आसमां बनने में देर न लगेगी टांग आयी हूँ सारे ग़म दरो दीवार के खूंटी पर अब वफ़ाओं...
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तूने दिखाया था जहां ए हुस्न मगर मेरे जहाँ ए हक़ीक़त में हुस्न ये बिखर गया चलना पड़ा मुझे इस कदर यहाँ वहाँ गिनने वालों से पाँव का छाला न गिना गय...
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कदम से कदम मिलाकर देख लिया आसान नहीं है तेरे साथ चलना तुझे अपनी तलाश है मुझे अपनी मुश्किल है दो मुख़्तलिफ़ का साथ रहना यूँ तो तू दरिया और ...
@ अना जी क्या खूब कहा.... ये दुनिया है ही ऐसी........
जवाब देंहटाएं.
मेरे ब्लॉग सृजन_ शिखर पर " हम सबके नाम एक शहीद की कविता "
mujhe bhi sms ke roop me mili thi ye rachna.. great one.. and so true.. :)
जवाब देंहटाएंअब पता चला मौत कितनी बेहतर है ज़िंदगी से
जवाब देंहटाएंहम तो यूं ही जिए जा रहे थे
bahoot khoob.
मर्म को बेधने वाली रचना।
जवाब देंहटाएंरचनाकार को प्रणाम।
-डॉ० डंडा लखनवी
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मुनाफ़ा
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नए दौर में ये इजाफा हुआ है।
जो बोरा था वो अब लिफाफा हुआ है॥
जिन्हें लत पड़ी थूकने - चाटने की-
वो कहते हैं इससे मुनाफा हुआ है॥
-डॉ० डंडा लखनवी
एक कटु सत्य.
जवाब देंहटाएंइंसान की अमूमन मरने के बाद ज्यादा कद्र होती है
मर्म को बेधने वाली रचना।
जवाब देंहटाएंvaah....lazawaab.....!!
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