दिन ढला शाम हुई
चिड़ियों की कुहक
वीरान हुई
दिन ने रात को
गले लगाया
सांझ का ये नज़ारा
आम हुई
पेड़ों की झुरमुटों से
चांदनी की छटा
दीदार हुई
तारों की अधपकी रोशनी
आसमां की ज़मी पे
मेहरबान हुई
ये तो रोज़ का नज़ारा है
जाने क्यों लिखने को
बेचैन हुई
चलो आखिर इस बहाने
मेरी ये कविता
ब्लॉग-ए-आम हुई
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दिसंबर 09, 2010
ब्लॉग-ए-आम........
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कुछ अलग-सा फ़ॉर्मेट अपनाकर आपकी यह भावाभिव्यक्ति सुंदर रचना का शक्ल अख़्तियार की है।
जवाब देंहटाएंvery sentimental, great
जवाब देंहटाएंबातेँ भले ही रोज की हो मगर आपने इसे खूबसुरत कविता का जो आकार दे दिया है।
जवाब देंहटाएंअलग अन्दाज़ की सुन्दर कविता।
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर।
जवाब देंहटाएंवाह अच्छा लिखा है जी
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति,बधाई।
जवाब देंहटाएं"सांझ का नज़ारा आम हुई" वाली पंक्ति में मुझे व्याकरण दोष लग रहा है , देख लें।
वाह! क्या बात है, बहुत सुन्दर!
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर
जवाब देंहटाएंआना जी आपका ब्लॉग बहुत पसंद आया है !