क्षण-भंगुर ये काया
भटकाती है माया
मन के इस भटकन से
बारम्बार छलते है
चलायमान सांसो का
गतिमान इस धड़कन का
नश्वर इस काया से
मोहभंग होना है
सावन फिर आयेगा
बदरा फिर छाएगा
ऋतुओं को आना है
आकर छा जायेगा
बदरा फिर छाएगा
ऋतुओं को आना है
आकर छा जायेगा
मन के इस पंछी को
तन के इस पिंजरे में
सहलाकर रखना है
वर्ना उड़ जायेगा
रे बंधु सुन रे सुन
नश्वर इस काया की
माया में न पड़ तू
वर्ना पछतायेगा
आध्यत्मिक दर्शन कराती कविता
जवाब देंहटाएंमाया से बचेंगे तो ही पार पायेंगें
उत्कृष्ट नवगीत ।
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट नवगीत ।
जवाब देंहटाएंचलायमान सांसो का
जवाब देंहटाएंगतिमान इस धड़कन का
नश्वर इस काया से
मोहभंग होना है
....गहन चिंतन से परिपूर्ण एक शास्वत सत्य को गहराई से रेखंकित करती एक सुन्दर प्रस्तुति..आभार
बहुत ही सुन्दर कविता ..
जवाब देंहटाएंकई रंगों को समेटे हुए...
मुट्ठी भर आसमान...
sunder
जवाब देंहटाएंअना जी, बहुत ही सच्ची बात कही आपने इस कविता के माध्यम से. सुंदर प्रस्तुति .
जवाब देंहटाएंउपेन्द्र
सृजन - शिखर पर ( राजीव दीक्षित जी का जाना
अन्तरआत्मा को एक सन्देश देती रचना। उम्दा।
जवाब देंहटाएंman ko to sab vash me rakhna chahte hai par man-panchi kahah vash me rahta hai?
जवाब देंहटाएंsundar bhavabhivyakti !
sundar bhavabhivyakti !
जवाब देंहटाएंbahut achcha likha aapne bhi aur aapne mere blog par comment kiya merijeevankatha.blogspot.com par.....
जवाब देंहटाएंthanx aur plz mera ek aur blog hai samratonlyfor.blogspot.com
usko bhi dekhna aur plz comment karna
bahot achcha.
जवाब देंहटाएंएक सन्देश देती रचना,सुंदर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंजीवन के वास्तविक सत्यों का उद्घाटन किया है आपने ...बड़ी बारीकी से ...शुक्रिया
जवाब देंहटाएंखूब संभाला मन को फ़िर भी न जाने क्यूं ये उड़ने को करता है
जवाब देंहटाएंसमझाया बहुत, फ़िर भी न जाने क्यूं माया में पड़ने को मरता है...
खूब संभाला मन को फ़िर भी न जाने क्यूं ये उड़ने को करता है
जवाब देंहटाएंसमझाया बहुत, फ़िर भी न जाने क्यूं माया में पड़ने को मरता है...
रे बंधु सुन रे सुन
जवाब देंहटाएंनश्वर इस काया की
माया में न पड़ तू
वर्ना पछतायेगा
जीवन के सत्य को लिखा है अपने .. सार्थक रचना ... पर इंसान समझ नही पाता इस बात को ...