इन बारिश की बूंदों को
तन से लिपटने दो
प्यासे इस चातक का
अंतर्मन तरने दो
बरसो की चाहत है
बादल में ढल जाऊं
पर आब-ओ-हवा के
फितरत को समझने दो
फिर भी गर बूंदों से
चाहत न भर पाए
मन की इस तृष्णा को
बादल से भरने दो
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंमन की तृष्णा को
बादल से भरने दो
वाह वाह
► आना जी ,,,
जवाब देंहटाएंअंतर्मन की तृष्णा को चाहत की बूंदों से पूरित कर पाने की कोशिश भर है आपकी यह कविता... बहुत सुन्दर रचना है आपकी...
अगर मौका मिले तो मेरा ब्लॉग भी है भ्रमण के लिए...
(मेरी लेखनी.. मेरे विचार..)
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फिर भी गर बूंदों से
जवाब देंहटाएंचाहत न भर पाए
मन की इस तृष्णा को
बादल से भरने दो
pyari baat..
khubshurat andaaj!!
pyar bhari sunder rachna
जवाब देंहटाएं“बरसो की चाहत है
जवाब देंहटाएंबादल में ढल जाऊं
पर आब-ओ-हवा के
फितरत को समझने दो”
वाह! क्या लाजवाब लिखा है आपने. विभिन्न ब्लोगों पर जाकर खूबसूरत कवितायें पढ़ना किसी भी सुखद आश्चर्य से कम नहीं है. उतना ही विस्मयकारी है हमारा उन स्थलों पर जाना जिनको हमने पहले कभी नहीं देखा. सचमुच आनंद आ गया आपकी रचनाएँ पढकर. अब तो मेरा भी मन करता है कि मैं आपकी इस ब्लॉग में खो जाऊं और इसकी आबो-हवा और फितरत से कुछ सीख लूं. अश्विनी रॉय
तृष्णा की तृप्ति नहीं होती और फिर जब वो मन की तृष्णा हो तो ...
जवाब देंहटाएंतन से लिपटने दो
जवाब देंहटाएंप्यासे इस चातक का
अंतर्मन तरने दो
क्या बात hai
बेहतरीन रचना !
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