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सितंबर 22, 2010

मन बंजारा


मेरे इस रेगिस्तान मन में
 बूँद प्यार का गर टपक जाए
  रेत गीली हो जाय
   दिल का दामन भर जाय


    जन्मों से प्यासे इस मन को
     प्यार का जो सौगात मिला
      मन पंछी बन उड़ जाए
       रहे न जीवन से गिला


        जाने क्यों मन भटका जाय
         ढूंढे किसे ये मन बंजारा
          है आवारा बादल की तलाश
           पाकर मन कहे 'मै हारा'


             इतना प्यार उड़ेलूँ उसका ..
              आवारापन संभल जाए
               वो बूँद बन जाए बादल का
                और इस सूखे मन में टपक जाए

9 टिप्‍पणियां:

  1. बंजारा मन की बहुत सुन्दर तलाश...बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

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  2. बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना लिखा है आपने! बधाई!
    मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
    http://seawave-babli.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर अभिव्यक्ति......
    apke blogs par aaker achha laga....sabhi blog bade achhe banaye hain ...

    जवाब देंहटाएं
  4. सुन्दर अभिव्यक्ति......
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    जवाब देंहटाएं
  5. प्यार के एहसास से सजी एक खूबसूरत रचना.

    जवाब देंहटाएं

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