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अक्तूबर 12, 2010
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हमने रखे हैं नक्शे पा आसमां के ज़मीं पर अब ज़मीं को आसमां बनने में देर न लगेगी टांग आयी हूँ सारे ग़म दरो दीवार के खूंटी पर अब वफ़ाओं...
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तूने दिखाया था जहां ए हुस्न मगर मेरे जहाँ ए हक़ीक़त में हुस्न ये बिखर गया चलना पड़ा मुझे इस कदर यहाँ वहाँ गिनने वालों से पाँव का छाला न गिना गय...
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कदम से कदम मिलाकर देख लिया आसान नहीं है तेरे साथ चलना तुझे अपनी तलाश है मुझे अपनी मुश्किल है दो मुख़्तलिफ़ का साथ रहना यूँ तो तू दरिया और ...
बहुत ही सुन्दर भावनापूर्ण अभिव्यक्ति...प्रेम की कशिश बिना दर्द के महसूस नहीं की जा सकती...अति सुन्दर...आभार
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना...यह ख़ूबसूरत रचना के लिए बधाई...
जवाब देंहटाएंकाँटे ही फूल की अहमियत बताते हैं
जवाब देंहटाएंयही दस्तूर है मुहोब्बत का
जवाब देंहटाएंएक तरफ वफ़ा तो
दूसरे पहलु में
जफा को बाँध लाएगी.
यादो में वफ़ा के जी सके तो जो
बेवफाई वर्ना मार जायेगी.
वाह जी बल्ले बल्ले शेर हैं
जवाब देंहटाएंसुन्दर क्षणिकाएं हैं !
जवाब देंहटाएंप्रेम का प्राप्य तो आंसू, पीड़ा और एक कभी न खत्म होने वाली टीस है और उसी में उसकी सार्थकता छिपी हुई है. खूबसूरत रचना. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर
डोरोथी.
तेरा दिल हर फूल पर क्यूं आया। सुन्दर पंक्ति , ख़ूबसूरत कविता।
जवाब देंहटाएंphool ki khoobsurati aankhon par pattin bandh deti hai aur nazar uske saath jude kaantein dekh nahi paati ... bahut khoobsurat rachna ...
जवाब देंहटाएंAbsolutely love it! Nice one:)
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा
जवाब देंहटाएं.प्रेम की कशिश बिना दर्द के महसूस नहीं की जा सकती.प्रेम तो आंसू है , पीड़ा है ........
जवाब देंहटाएंsundar abhivyakti.......bahut khub!!
जवाब देंहटाएंprem bhari rachna:)
बहुत ही सुन्दर रचना| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंयही इश्क है..........:)
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