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सितंबर 17, 2010
मनोकामना
तेरी अधरों की मुस्कान
देखने को हम तरस गए
घटाए भी उमड़-घुमड़ कर
यहाँ वहाँ बरस गए
पर तेरी वो मुस्कान
जो होंठों पर कभी कायम था
पता नहीं क्यों किस जहां में
जाकर सिमट गए
तेरी दिल की पुकार
सुनना ही मेरी चाहत है
प्यार की कशिश को पहचानो
ये दिल तुझसे आहत है
मुस्कुराना गुनाह तो नहीं
ज़रिया है जाहिर करने का
होंठो से न सही इन आँखों से
बता दो जो दिल की छटपटाहट
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बहुत अच्छी अभिव्यकक्ति भावों की.......
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना ...........आपका ब्लॉग अच्छा लगा ....सच है मुस्कुराकर ही इस जिंदगी में दुखो से जीता जा सकता है .........खलील जिब्रान पर आपकी टिप्पणी का तहेदिल से शुक्रिया.........ये आप की ज़र्रानवाज़ी है की आपने जिब्रान साहब को वो बुलंद दर्जा दिया जिसके की वो हकदार हैं.....आप जैसे कुछ कद्रदानो के लिए ही मैंने खलील साहब पर ये ब्लॉग बनाया है .........उनके विचारों को समझना हर किसी के बस का है भी नहीं.............एक बार फिर आपका शुक्रिया .........करम बनाये रखिये|
जवाब देंहटाएंकभी फुर्सत में हमारे ब्लॉग पर भी आयिए-
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एक गुज़ारिश है ...... अगर आपको कोई ब्लॉग पसंद आया हो तो कृपया उसे फॉलो करके उत्साह बढ़ाये|
pyar ke dard ki bahut sundar abhivyakti....
जवाब देंहटाएंhttp://sharmakailashc.blogspot.com/
बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ शानदार रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
जवाब देंहटाएंaccha blog hai aur kavitaayen bhi acchi hain. :)
जवाब देंहटाएंभावों की बहुत अच्छी अभिव्यक्ति .......
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