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आना जी,
जवाब देंहटाएंदिल को इतना ना दहलाओ
की पढने वाले दहल जायें
अच्छी अभिव्यक्ति है
डा.राजेंद्र तेला "निरंतर"
अजमेर,
bahut achhi rachna! badhayee!
जवाब देंहटाएंप्रेम राग को अच्छा समझाया है आपने।
जवाब देंहटाएंअच्छा लेखन ,बधाई ।
जवाब देंहटाएंअच्छा लेखन ,बधाई ।
जवाब देंहटाएंAwesome!!!
जवाब देंहटाएंBahut hi achha prastutikaran
आना जी प्रेम का ही दूसरा नाम वेदना है ,क्योनी ख़ुशी और गम दोनों मिलते हैं . जो प्रेम की अनुभूति को पा चूका है वो समझ गया इसमें मिले शूल भी फूल से लगते हैं ......... अच्छी अभिव्यक्ति दी है आपने प्रेम की.
जवाब देंहटाएंANA JI..pyar aur vedna ak doosre ke poorak hain sunder rchna..badhayee
जवाब देंहटाएंवाह! सुन्दर भाव! सुन्दर शब्द विन्यास!
जवाब देंहटाएंवो अजनबी सा बन गया
जवाब देंहटाएंमेरे अनुरागी मन को
बैरागी बना दिया
रोग प्रेम का है ही ऐसा
कभी दिल बहल गया
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
हिन्दी, भाषा के रूप में एक सामाजिक संस्था है, संस्कृति के रूप में सामाजिक प्रतीक और साहित्य के रूप में एक जातीय परंपरा है।
देसिल बयना – 3"जिसका काम उसी को साजे ! कोई और करे तो डंडा बाजे !!", राजभाषा हिन्दी पर करण समस्तीपुरी की प्रस्तुति, पधारें
ana ji bahoot khoob.........
जवाब देंहटाएंrat ka sunapan bahoot achchhi prastuti lagi.......
बहुत अच्छी कविता..अंतिम पंक्तियां बहुत सुंदर हैं
जवाब देंहटाएंअच्छी नज़्म ...
जवाब देंहटाएंकुछ वर्तनी की गलतियां जरुर हैं
सुधारें ....!!
प्रेम के दर्द और विवशता की बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति.....
जवाब देंहटाएंhttp://sharmakailashc.blogspot.com/
सुन्दर रचना ....
जवाब देंहटाएंशानदार रचना.............बधाई....:)
जवाब देंहटाएंbahut behtAREEn....
जवाब देंहटाएंyun hi likhte rahein...
प्रेम का रोग है ही ऐसा....
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति.
दिल की गहराइयों से निकले शब्द
जवाब देंहटाएंबहुत खूब बस ....बहुत अच्छा लगा
बहुत सुन्दर है
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