कतरा-कतरा ज़िंदगी का पी लेने दो बूँद बूँद प्यार में जी लेने दो
हल्का-हल्का नशा है
डूब जाने दो रफ्ता-रफ्ता “मैं” में राम जाने दो
जलती हुई आग को
बुझ जाने दो आंसूओं के सैलाब को बह जाने दो
टूटे हुए सपने को
सिल लेने दो रंज-ओ-गम के इस जहां में बस लेने दो
मकाँ बन न पाया फकीरी
कर लेने दो इस जहां को ही अपना कह लेने दो
तजुर्बा-इ-इश्क है खराब
समझ लेने दो अपनी तो ज़िंदगी बस यूं ही जी लेने दो |
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अगस्त 24, 2010
जी लेने दो
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waah , shabdo ka gunjan .. kya khoob likha hai aapne .. shabd jaise ek alag hi kahani kah rahe ho ..
जवाब देंहटाएंBADHAI
VIJAY
आपसे निवेदन है की आप मेरी नयी कविता " मोरे सजनवा" जरुर पढ़े और अपनी अमूल्य राय देवे...
http://poemsofvijay.blogspot.com/2010/08/blog-post_21.html
कविता में बहुत खूबसूरत बिम्ब है..सपनो को सिलना...कही कुछ बोझिल नहीं,,
जवाब देंहटाएंana ji
जवाब देंहटाएंbahoot achchhi khwahis hai ,magar puri ho jaye tab...........bahoot achchha laga ummid ko jagana.