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अगस्त 24, 2010

जी लेने दो



leiser Wind Preview
कतरा-कतरा ज़िंदगी का
पी लेने दो
बूँद बूँद प्यार में
जी लेने दो

हल्का-हल्का नशा है
डूब जाने दो
रफ्ता-रफ्ता “मैं” में
राम जाने दो

जलती हुई आग को
बुझ जाने दो
आंसूओं के सैलाब को
बह जाने दो

टूटे हुए सपने को
सिल लेने दो
रंज-ओ-गम के इस जहां में
बस लेने दो

मकाँ बन न पाया फकीरी
कर लेने दो
इस जहां को ही अपना
कह लेने दो

तजुर्बा-इ-इश्क है खराब
समझ लेने दो
अपनी तो ज़िंदगी बस यूं ही
जी लेने दो

3 टिप्‍पणियां:

  1. waah , shabdo ka gunjan .. kya khoob likha hai aapne .. shabd jaise ek alag hi kahani kah rahe ho ..

    BADHAI

    VIJAY
    आपसे निवेदन है की आप मेरी नयी कविता " मोरे सजनवा" जरुर पढ़े और अपनी अमूल्य राय देवे...
    http://poemsofvijay.blogspot.com/2010/08/blog-post_21.html

    जवाब देंहटाएं
  2. कविता में बहुत खूबसूरत बिम्ब है..सपनो को सिलना...कही कुछ बोझिल नहीं,,

    जवाब देंहटाएं
  3. ana ji
    bahoot achchhi khwahis hai ,magar puri ho jaye tab...........bahoot achchha laga ummid ko jagana.

    जवाब देंहटाएं

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