तुम मेरे शहर मे आये तुमसे मिलने का ख्वाब बुनूं ||
शाम ढलने लगी चिरागों से बात करने लगी
तुम्हारे आने की इंतज़ार मे लम्हा-लम्हा पिघलती रही ||
वफ़ा-ए -इश्क़ की कौन सी तस्वीर है ये
तेरे पाँव के निशाँ मे ही अपना वज़ूद ढूंढ़ती रही ||
मेरी सिसकियाँ शायद तुम तक न पहुँच पाया अभी
लम्हा कतरा-कतरा पिघलता रहा मै लम्हों में जीती रही ||
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चित्र गूगल साभार
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