पाखी उड़ जा रे बहती हवा में महकी फ़िज़ा में, कल-कल बहती सरित-झरनों में, शीत का अंत है ये !!! पीले हरे फूलों के रंग- पलाश-ढाक के पत्तों के संग, भ्रमर गुंजायमान,वसंत के ढंग, फागुन का रंग है ये !!!! प्रेम-प्लावित ह्रदय अनुराग; आह्लादित मन गाये विहाग; ऋतुराज ने छेड़ा वसंत राग- फागुन का दंश है ये !!!! तारों भरा गगन रजनीकर- तारक-दल-दीपों से उज्जवल, नभ पर जगमग जलता प्रतिपल फागुन का गगन है ये !!! पाखी तेरा नीड़ सघन; डाली-डाली शाखा उपवन; सुखी तेरा संसार निज-जन- फागुन का बयार है ये !!! |
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मार्च 30, 2014
फागुन का रंग
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हमने रखे हैं नक्शे पा आसमां के ज़मीं पर अब ज़मीं को आसमां बनने में देर न लगेगी टांग आयी हूँ सारे ग़म दरो दीवार के खूंटी पर अब वफ़ाओं...
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तूने दिखाया था जहां ए हुस्न मगर मेरे जहाँ ए हक़ीक़त में हुस्न ये बिखर गया चलना पड़ा मुझे इस कदर यहाँ वहाँ गिनने वालों से पाँव का छाला न गिना गय...
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ये धूप की बेला ये छांव सी ज़िन्दगी न चांदनी रात न सितारों से दिल्लगी जमी हूँ मै शिला पर - बर्फ की तरह काटना है मुश्किल...
very nice .
जवाब देंहटाएंvery nice .
जवाब देंहटाएंखूबसूरत पंक्तियाँ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
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