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मै नदी हूँ ............. पहाड़ो से निकली नदों से मिलती कठिन धरातल पर उफनती उछलती प्रवाह तरंगिनी हूँ ...
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मेरे घर के आगे है पथरीली ज़मीन हो सके तो आओ इन पत्थरों पर चलकर पूनम की चाँद ने रोशनी की दूकान खोली है खरीद लो रोशनी ज़िंदगी रोशन कर ल...
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मेरी ख़ामोशी का ये अर्थ नही की तुम सताओगी तुम्हारी जुस्तजू या फिर तुम ही तुम याद आओगी वो तो मै था की जब तुम थी खडी मेरे ही आंग...
Pyari aur chhoti nazm.
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना!
जवाब देंहटाएंbahut gahri baat....achchi lagi.
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंबधाई ।।
बहुत सुन्दर वाह!
जवाब देंहटाएंआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 23-04-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-851 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
सुंदर भाव...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंकश्ती को ये बात कौन बताये जालिम
जवाब देंहटाएंना दरिया अपनी न किनारा अपना.
बहुत सुंदर गज़ल.