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मै नदी हूँ ............. पहाड़ो से निकली नदों से मिलती कठिन धरातल पर उफनती उछलती प्रवाह तरंगिनी हूँ ...
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मेरे घर के आगे है पथरीली ज़मीन हो सके तो आओ इन पत्थरों पर चलकर पूनम की चाँद ने रोशनी की दूकान खोली है खरीद लो रोशनी ज़िंदगी रोशन कर ल...
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मेरी ख़ामोशी का ये अर्थ नही की तुम सताओगी तुम्हारी जुस्तजू या फिर तुम ही तुम याद आओगी वो तो मै था की जब तुम थी खडी मेरे ही आंग...
इतना भरोसा कि चिंताएं मिट जाएँ !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंआपके इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल दिनांक 26-03-2012 को सोमवारीय चर्चामंच पर भी होगी। सूचनार्थ
बहुत सुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंखूबसूरत रचना...
जवाब देंहटाएंसादर।
वाह ...बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव संयोजन के साथ सुंदर एवं सार्थक प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंवाह...सुन्दर प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंअनु
Wah! bhaw purn rachna...prabhawshali
जवाब देंहटाएंpositive thinking poem
जवाब देंहटाएंwaah bahut khub
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