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दिसंबर 14, 2011

मुद्दत हुए....



 मुद्दत हुए हाल-ए-दिल 
तुमसे बयान किये हुए 
फुर्सत में,तन्हाई में 
 लम्हें     ढूँढ़ते     हुए 


इश्क-सागर की गहराई 
नापने चली थी मैं 
पर तुम मिले -
गीली रेत पर कदमों के 
निशाँ ढूँढ़ते हुए 


आईने में अपना ही चेहरा 
पराया सा नज़र आया 
चंद भींगे लम्हों को मैंने 
तकिये में है दबाया 


मुद्दत हुई चाँद से 
चंद बातें किये हुए 
 तारों की सरजमीं पे 
रौशनी से नहाते हुए 





15 टिप्‍पणियां:

  1. ''इश्क-सागर की गहराई
    नापने चली थी मैं
    पर तुम मिले -
    गीली रेत पर कदमों के
    निशाँ ढूँढ़ते हुए''

    बेहतरीन लाईनें... गजब के जज्‍बात।

    जवाब देंहटाएं
  2. मुद्दत हुई चाँद से
    चंद बातें किये हुए
    तारों की सरजमीं पे
    रौशनी से नहाते हुए...bhaut khubsurat abhivaykti.........

    जवाब देंहटाएं
  3. आईने में अपना ही चेहरा
    पराया सा नज़र आया
    चंद भींगे लम्हों को मैंने
    तकिये में है दबाया
    हृदयस्पर्शी एहसास!

    जवाब देंहटाएं
  4. मुद्दत हुई चाँद से
    चंद बातें किये हुए
    तारों की सरजमीं पे
    रौशनी से नहाते हुए

    jismei dekho chaand
    usee se dil lagaa liyaa karo

    जवाब देंहटाएं
  5. बेहतरीन सोच. खूबसूरत कविता.

    जवाब देंहटाएं
  6. बेहद खूबसूरत नज़्म दिल मे उतर गयी।

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुंदर प्यारी रचना,....

    मेरी नई पोस्ट की चंद लाइनें पेश है....

    नेता,चोर,और तनखैया, सियासती भगवांन हो गए
    अमरशहीद मातृभूमि के, गुमनामी में आज खो गए,
    भूल हुई शासन दे डाला, सरे आम दु:शाशन को
    हर चौराहा चीर हरन है, व्याकुल जनता राशन को,

    पूरी रचना पढ़ने के लिए काव्यान्जलि मे click करे

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  8. बहुत खूब


    ना ये ज़मी तेरी ...ना ये आसमान तेरा ....
    फिर भी क्यूँ तू तेरी तालाश अब भी अधूरी है...anu

    जवाब देंहटाएं

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