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मई 28, 2011

कदम क्यों रुक

कदम क्यों रुक से से गए
तेरे दामन में आकर
साँसें क्यों थम सी गयी
तुम्हे याद-याद कर


नींद भी क्यों न आये
मुझे आधी रात तलक
उनींदी रातें गुजारूं मै
इंतज़ार में कब तक


मेरी हस्ती मिट जायेगी
तुम्हे याद करते
बेजान सी ज़िन्दगी है मेरी
सपनो में तुम्हे देखते


यूं ही समय कट जायेगी
यादों के पन्ने पलटते
अक्स धुंधली पड़ जायेगी
रिश्तों के सिलवटों को झटकते


बस कहा दो इतना कि
तुम अब भी हो मेरे
मन के दरख्तों में बसे है
मेरे ही चेहरे


तुम्हे छूकर जाती है
जो हवा मुझसे होकर
उन हवाओं में अब भी
तुम ढूँढ़ते हो अक्स मेरा  

14 टिप्‍पणियां:

  1. तुम्हे छूकर जाती है
    जो हवा मुझसे होकर
    उन हवाओं में अब भी
    तुम ढूँढ़ते हो अक्स मेरा

    बहुत बढ़िया लिखा है आपने.

    जवाब देंहटाएं
  2. हर शब्‍द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्‍यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।

    जवाब देंहटाएं
  3. तुम्हे छूकर जाती है
    जो हवा मुझसे होकर
    उन हवाओं में अब भी
    तुम ढूँढ़ते हो अक्स मेरा
    ....yun hi to pyar ko bhulana aasan nahi!

    जवाब देंहटाएं
  4. बस कहा दो इतना कि
    तुम अब भी हो मेरे
    मन के दरख्तों में बसे है
    मेरे ही चेहरे
    bhawnaaon ka ufaan hai

    जवाब देंहटाएं
  5. बस कहा दो इतना कि
    तुम अब भी हो मेरे
    मन के दरख्तों में बसे है
    मेरे ही चेहरे
    bhawnaaon ka ufaan hai

    जवाब देंहटाएं
  6. इसी को तो प्यार कहते है।

    जवाब देंहटाएं
  7. सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!

    जवाब देंहटाएं
  8. तुम्हे छूकर जाती है
    जो हवा मुझसे होकर
    उन हवाओं में अब भी
    तुम ढूँढ़ते हो अक्स मेरा

    beautifully written.

    जवाब देंहटाएं
  9. वाह! यह तो बहुत कलात्मक ढंग से सजा हुआ ब्लॉग है. पोस्ट भी दिलचस्प..
    ---देवेंद्र गौतम

    जवाब देंहटाएं
  10. अछा काव्य है,,,
    मन में उतर जाने वाला
    बधाई .

    जवाब देंहटाएं
  11. तुम्हे छूकर जाती है
    जो हवा मुझसे होकर
    उन हवाओं में अब भी
    तुम ढूँढ़ते हो अक्स मेरा

    बेहतर रचना

    आपको पढ़कर एक गीत का मुखड़ा याद आया-

    मेरे रीते अधरों पर फिर क्यों लिख दी तरुणाई
    हवा देह बन गई जो मुझतक तुमको छूकर आई।

    जवाब देंहटाएं
  12. तुम्हे छूकर जाती है
    जो हवा मुझसे होकर
    उन हवाओं में अब भी
    तुम ढूँढ़ते हो अक्स मेरा
    सुंदर रचना प्रेम को शब्द देती...

    जवाब देंहटाएं

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