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जनवरी 28, 2011

विरह


दुःख तुमने जो दिए
   सहा न जाए
सुख मुझसे दूर भागे
   रहा न जाए

वंचित हूँ तुम्हारे प्यार से
   क्यों समझ ना आये
कटी हूँ मैं जीवन से कैसे
   कहा ना जाए

तुम्हारा वो संगसुख
   भुलाया ना जाए
वो मृदु स्पर्श प्रेम वचन
   क्यों याद आये

वो आलिंगन वो दुःख-सुख में 
   साथ का किया था वादा 
कैसे मै विस्मरण करूँ उन पलों को 
   वो स्मरण रहेंगे सदा 

तुमने अपने दायित्व  से 
   क्यों मूंह फेर लिया 
कोई गुप्त कारण है या यूं ही
   मुझे रुसवा किया 

क्यों ऐसा लगे की तुम 
   अवश्य लौटोगे 
मेरे साथ किया गया वादा 
तुम अवश्य निभाओगे 

ये जो लोग कहे की जानेवाला 
   वापस न आये कभी 
मै जानूं तुम कोई गया वक्त नही हो 
   जो लौट न पाओगे

15 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।

    जवाब देंहटाएं
  2. ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.

    जवाब देंहटाएं
  3. jo ek bar chale jate hain
    vo fir kabhi lautkar nhi aate
    khubsurat rachna

    जवाब देंहटाएं
  4. priya anna ji
    pranam ,

    bahut hi marmik kavita se paichit karaya hai aapne, sundar rachana , badhai .

    जवाब देंहटाएं
  5. बढ़िया प्रयास..शुभकामनाएँ.

    जवाब देंहटाएं
  6. विरह के भावो को परिलक्षित करती रचना बहुत सुन्दर है।

    जवाब देंहटाएं
  7. ये जो लोग कहे की जानेवाला
    वापस न आये कभी
    मै जानूं तुम कोई गया वक्त नही हो
    जो लौट न पाओगे


    याद तो वो आते है जिन्हे हम भुल जाते है
    जो दिल में रहते है वो दूर कहॉ जाते है।

    जवाब देंहटाएं
  8. ये जो लोग कहे की जानेवाला
    वापस न आये कभी
    मै जानूं तुम कोई गया वक्त नही हो
    जो लौट न पाओगे

    ..बहुत भावपूर्ण..अंतिम पंक्तियाँ लाज़वाब..

    जवाब देंहटाएं
  9. उम्दा भावपूर्ण प्रस्तुति ..

    जवाब देंहटाएं
  10. बहुत बढ़िया...आप बहुत सुंदर कविता लिखती है.....इस्सी तरह लिखती रहिये..और हम इसी तरह पड़ते रहेंगे...आपको सहराते रहेंगे...

    जवाब देंहटाएं

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