हाथों में मेहंदी जो लगा ली
अब पल्लू को सँभालूँ कैसे
भारी-भरकम पाजेब पहनेचुपके से मिलने आऊँ कैसे
अजीब है इश्क़ की फितरत
करने को है हजार बातें
सामने तुम और ये लब ख़ामोश
ज़ुबाँ पे ताला पड़ा हो जैसे
रात बेरात आँखे जगती है
समां बांधती है तुम्हारा ख़याल
गुफ्तगू एक तुम्हीं से है
तुम्हीं से है हज़ारों सवाल
मेहंदी की बातें मेहँदी ही जाने
उफ्फ कोई तरीका तो हो
मिलूं तुमसे पर पाजेब के
ज़ुबाँ पे ताला लगा तो दो
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