याद आता है ख़ूब वो गांव का मकान
वो खुली सी ज़मीन वो खुला आसमान
वो बड़ा सा आंगन और ऊंचा रोशनदान
वो ईंटों का छत और पतंगों की उड़ान
वो बचपन की शरारत नानी बाबा का दुलार
उस आंगन में मनता था छोटे बड़े त्योहार
बच्चों की किलकारियां और खुशियां हजार
कई रिश्तों का घर था वो था रिश्तों में प्यार
आज भी ज़हन में है बसा वो घर
मिली थी जहाँ हमें दो जहां का प्यार
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