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मै नदी हूँ ............. पहाड़ो से निकली नदों से मिलती कठिन धरातल पर उफनती उछलती प्रवाह तरंगिनी हूँ ...
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मेरे घर के आगे है पथरीली ज़मीन हो सके तो आओ इन पत्थरों पर चलकर पूनम की चाँद ने रोशनी की दूकान खोली है खरीद लो रोशनी ज़िंदगी रोशन कर ल...
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मेरी ख़ामोशी का ये अर्थ नही की तुम सताओगी तुम्हारी जुस्तजू या फिर तुम ही तुम याद आओगी वो तो मै था की जब तुम थी खडी मेरे ही आंग...
हर दिन फाग सा....
जवाब देंहटाएंइन्तहा है इंतज़ार की...प्यार की...
सुन्दर भाव..
अनु
आपकी यह बेहतरीन रचना शनिवार 23/03/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जाएगी. कृपया अवलोकन करे एवं आपके सुझावों को अंकित करें, लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन भाव लिए कविता बधाई अनु जी
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर भाव लिए रचना,,,
जवाब देंहटाएंहोली की हार्दिक शुभकामनायें!
Recent post: रंगों के दोहे ,
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंपधारें "चाँद से करती हूँ बातें "
क्या कहु...
जवाब देंहटाएंएकदम दिल को छू लेनेवाली रचना...
बहुत ही बेहतरीन....
दिल के भावों से सजी लेखनी ....बहुत खूब
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