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हमने रखे हैं नक्शे पा आसमां के ज़मीं पर अब ज़मीं को आसमां बनने में देर न लगेगी टांग आयी हूँ सारे ग़म दरो दीवार के खूंटी पर अब वफ़ाओं...
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तूने दिखाया था जहां ए हुस्न मगर मेरे जहाँ ए हक़ीक़त में हुस्न ये बिखर गया चलना पड़ा मुझे इस कदर यहाँ वहाँ गिनने वालों से पाँव का छाला न गिना गय...
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मैं जिंदा हूँ अन्याय का खिलाफत मैं कर नहीं पाता कुशासन-सुशासन का फर्क समझ नहीं पाता प्रदूषित हवा में सांस लेता हूँ पर मैं जिंदा हूँ सर...
सच्चाई जीवन की.......
जवाब देंहटाएंतुम्हारे आँखों की रौशनी ही
मेरे जीवन की आस है
तुमसे जुडी हुई लम्हों के -
किस्से ..बड़े ख़ास है
waah bahut sundar...
खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंबहुत कोमल और सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंbadhiya.....
जवाब देंहटाएंbadhayi.
बहुत ख़ूब!!
जवाब देंहटाएंप्रभावशाली प्रस्तुती....
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंसच्चाई जीवन की.......
जवाब देंहटाएंतुम्हारे आँखों की रौशनी ही
मेरे जीवन की आस है
तुमसे जुडी हुई लम्हों के -
किस्से ..बड़े ख़ास है
सुन्दर प्रस्तुति
Very Nice post
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