तुम्हारे आने से सुबह की शुरुआत हुई दिन भर लीगों से मेलजोल मुलाक़ात हुई मेरे फ़रियाद को सुन रब ने ये कह दिया जिससे दिन की शुरुआत हुई उसे इल्म ही तो न हुई |
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मै नदी हूँ ............. पहाड़ो से निकली नदों से मिलती कठिन धरातल पर उफनती उछलती प्रवाह तरंगिनी हूँ ...
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मेरी ख़ामोशी का ये अर्थ नही की तुम सताओगी तुम्हारी जुस्तजू या फिर तुम ही तुम याद आओगी वो तो मै था की जब तुम थी खडी मेरे ही आंग...
वाह ..दीपावली की शुभकामनाएँ !!
जवाब देंहटाएं.ये जीवन भी बड़ा ही रोचक एहसास से हमें भीतर से आंदोलित कर देता है । किसी का आना हो या जाना, इसे इससे फर्क नही पड़ता है लेकिन फर्क की लकीर को मिटा कर ङमें आत्मीय क्षणों से साक्षात्कार करा जाता है । आपकी प्स्तुति अच्छी लगी । धन्यवाद । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है ।
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंसुंदर....
आपको और आपके परिवार को दीप पर्व की शु भकामनाएं....
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...दीपावली की ढेरों शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर... शुभ दिवाली...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंदीवाली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ|
दीवाली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ|
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