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अगस्त 27, 2011

नदी में ज्वार.....

नदी में ज्वार आया
पर तुम आये कहाँ
खिडकी दरवाजा खुला है
पर तुम दिखे कहाँ
पेड़ों की डालियों पर
मुझे देख कोयल कूके
पर आज भी तुम दिखे नही
आखिर तुम हो कहाँ
सजी-धजी मंदिर जाऊं
पूजा करूँ सजदा करूँ
कभी तो पसीजोगे तुम
गर दिख जाओ मुझे यहाँ
लोग मुझे देख हँसे
दीवानी लोग मुझे कहे
अश्रु के सैलाब से
भर गया ये जहां



नजरुल कविता से अनुदित 

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