| डूबा दिन ढल गयी शाम ,रोक न पाऊँ मैं आकाश सज गए तारों से ,कदम बढाऊँ मै घोर घनघटा नहीं चांदनी , न रोशनी तारों की उतावला मन बिखरा पल , उठे मन में विचारें भी न हो ये शाम रात बदनाम , दिल बरबस तनहा मन बेचैन...सगरी रैन कब होवे सुबहा जाने क्या दिन का राज़ , उत्फुल्ल है मन रोशन है जग सारा ,हुआ मन रोशन |
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अगस्त 24, 2011
घोर घनघटा............
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बहुत सुन्दर रचना , सुन्दर भावाभिव्यक्ति .
जवाब देंहटाएंकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें.
बहुत ही खुबसूरत....
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंkomal ehsaas se saji ek rachna..
जवाब देंहटाएंprafuula karti rachna..
जवाब देंहटाएंखूबसूरत मनोभावों की उतनी ही खूबसूरत प्रस्तुति ! बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंsundar prastutu!
जवाब देंहटाएंabhaar!
खूबसूरत अह्सास.
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावों से लिखी शानदार अभिब्यक्ति /बधाई आपको /
जवाब देंहटाएंplease visit my blog .thanks.
www.prernaargal.blogspot.com
बहुत खुबसूरत प्रस्तुति ....
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