छोटा सा,एक रत्ती ,चूहा एक नन्हा
आँखे अभी खुली नही एकदम काना
टूटा एक दराज का जाली से भरा कोने में
माँ के सीने से चिपक कर उनकी बाते सुने रे
जैसे ही उसकी बंद आँखे खुली दराज के अन्दर
देखा बंद है कमरा उसका लकड़ी का है चद्दर
खोलकर अपने गोल-गोल आँखे देख दराज को बोला
बाप रे बाप!ये धरती सचमुच है कितना ss बड़ा
कवी सुकुमार राय द्वारा रचित कविता का अनुवाद
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