फ़ॉलोअर

जून 13, 2010

क्या लिखूं.............

क्या लिखूं आज समझ न आये 
कविता , कहानी या ग़ज़ल 
वर्ण, छंद लय हाथ न आये 
स्वयं रचूं या करूँ नक़ल 


पर रचना अपने आप जो आये 
उसकी महत्ता ही निराली है 
शब्द जो स्वयं रच जाए 
अपनी रचना वो कहलाती है 


अपने भावों को शब्दों में ढाला 
तो कविता रच गयी 
धीरे - धीरे खोयी व्यंजना 
शब्दों में आकर ढल गयी 


इस तरह मेरे कविता को 
एक शरीर मिल गया 
खोयी हुई अपनी काया को 
अंतत: कविता ने हासिल कर लिया 

3 टिप्‍पणियां:

  1. पर रचना अपने आप जो आये
    उसकी महत्ता ही निराली है..
    सच कहा..

    जवाब देंहटाएं
  2. अनाजी
    अपनी काया को कविता द्वारा स्वय प्राप्त करना
    सचमुच महत्वपूर्ण होता है ।
    आपकी कविता का जन्म उसी प्रक्रिया से हुआ है जैसे होना चाहिए , सह्जता से … जैसे डाली पर पत्ते स्वतः निकल आते हैं ।
    बधाई !
    श्रेष्ठ सृजन के लिए मंगलकामनाएं !!
    - राजेन्द्र स्वर्णकार
    शस्वरं

    जवाब देंहटाएं
  3. मौलिकता ही रचना है - क्योंकि रचना दिल से होती है, नकल से नहीं। आपको शुभकामनाएँ, आगे और उत्तम रचनाक्रम के लिए।

    जवाब देंहटाएं

ब्लॉग आर्काइव

widgets.amung.us

flagcounter

free counters

FEEDJIT Live Traffic Feed