मेरे जहाँ ए हक़ीक़त में हुस्न ये बिखर गया
चलना पड़ा मुझे इस कदर यहाँ वहाँ
गिनने वालों से पाँव का छाला न गिना गया
क़ाबिल था भरोसा था खूब खुद पर
जालिम दुनिया से मगर ये भी न देखा गया
उम्र कट रही मेरी पहर पहर जागकर
उनींदा रहता हूँ ये चाँद से भी न रहा गया
उजाला ए क़मर औ' तारों की जगमगाहट है
दिल ए तीरगी से पर ये रोशनी भी न सहा गया