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जुलाई 10, 2011

तन्हाइयों में रोकर...


तन्हाइयों में रोकर दिल बहलाते है 
बिखरे ग़म को सिलकर ग़ज़ल बनाते है 

यादें जो तुमसे है जुड़ी वो अक्सर छेड़ जाते है 
तेरी यादों के बज़्म में हम खो जाते है 

शबनम का कतरा..... दरिया बनाती है 
आस तुमसे मिलने की किनारा दिखाती है 

शबनम के कतरे को यूं बेकार न समझो 
इस नासूर दिल को ये मरहम लगाती है 



12 टिप्‍पणियां:

  1. ravikar ne --

    रचना के लिए बधाई ||

    जवाब देंहटाएं
  2. गम की कतरनों से बनी ग़ज़ल अच्छी है

    जवाब देंहटाएं
  3. बेहतरीन.

    कल 12/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  4. मन के भावों को सजीव करती अच्छी गज़ल

    जवाब देंहटाएं

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