मै नदी हूँ .............
पहाड़ो से निकली
नदों से मिलती
कठिन धरातल पर
उफनती उछलती
प्रवाह तरंगिनी हूँ
परवाह किसे है
ले चलती किसे मै
रेट हो या मिटटी
न छोडूँ उसे मै
तरल प्रवाहिनी हूँ
राह बनाती
सागर जा मिलती
पर्वत से अमृत को
लेकर मै चलती
न आदि न अंत
शिव जटा से प्रवाहित
जाह्नवी हूँ
पर्वत से अमृत को
जवाब देंहटाएंलेकर मै चलती
न आदि न अंत
शिव जटा से प्रवाहित
जाह्नवी हूँ
बहुत सुन्दर भाव। बधाई इस रचना के लिये।
अच्छा लिखा है ......
जवाब देंहटाएंvery very good poem
जवाब देंहटाएंNice post.
जवाब देंहटाएंयदि आप 'प्यारी मां' ब्लॉग के लेखिका मंडल की सम्मानित सदस्य बनना चाहती हैं तो
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राह बनाती
जवाब देंहटाएंसागर जा मिलती
पर्वत से अमृत को
लेकर मै चलती
न आदि न अंत
शिव जटा से प्रवाहित
जाह्नवी हूँ
Beautiful expression !
.
राह बनाती
जवाब देंहटाएंसागर जा मिलती
पर्वत से अमृत को
लेकर मै चलती
न आदि न अंत
शिव जटा से प्रवाहित
जाह्नवी हूँ
बहुत सुन्दर !
बहुत सुन्दर भाव्।
जवाब देंहटाएंबसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
बहुत सुन्दर भाव। धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंबसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ|
बहुत खूब लिखा है आपने...
जवाब देंहटाएंअति उत्तम!!!
मेरा ब्लॉग भी देखे....
http://nimhem.blogspot.com/
अत्यंत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति, शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
सुन्दर अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंgandhivichar
सुन्दर अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंगांधीविचार
राह बनाती
जवाब देंहटाएंसागर जा मिलती
पर्वत से अमृत को
लेकर मै चलती
न आदि न अंत
शिव जटा से प्रवाहित
जाह्नवी हूँ
बहुत सुन्दर ..........
बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ|
मान गए भाई दमदार लेखनी है।
जवाब देंहटाएंक्यूं भ्रम में रखते हैं आप
जवाब देंहटाएंशब्द आपके भी कम नहीं
दिल सबका लुभाते
हम तो यूँ ही लिख देते
ख्याल जो जहन में आते
निरंतर खुद को बहलाते
कलम फिर भी आप जैसी
चलती कहाँ
Aapke comments ke liye dhanyawaad
nadee see bahte rahein
जवाब देंहटाएंkalam se kamaal karte rahein