तन्हाइयों में रोकर दिल बहलाते है
बिखरे ग़म को सिलकर ग़ज़ल बनाते है
यादें जो तुमसे है जुड़ी वो अक्सर छेड़ जाते है
तेरी यादों के बज़्म में हम खो जाते है
शबनम का कतरा..... दरिया बनाती है
आस तुमसे मिलने की किनारा दिखाती है
शबनम के कतरे को यूं बेकार न समझो
इस नासूर दिल को ये मरहम लगाती है
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जुलाई 10, 2011
तन्हाइयों में रोकर...
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Nice sher .
जवाब देंहटाएंहिंदी ब्लॉगर्स को ‘अमन का पैग़ाम‘ दे रहे हैं जनाब एस. एम. मासूम साहब
शेर अच्छे है मुबारक हो
जवाब देंहटाएंravikar ne --
जवाब देंहटाएंरचना के लिए बधाई ||
बहुत खूब....
जवाब देंहटाएंगम की कतरनों से बनी ग़ज़ल अच्छी है
जवाब देंहटाएंबेहतरीन.
जवाब देंहटाएंकल 12/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
अच्छे भाव।
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जवाब देंहटाएंबेहद खुबसुरत गजल। आभार।
जवाब देंहटाएंमन के भावों को सजीव करती अच्छी गज़ल
जवाब देंहटाएंअच्छी गज़ल,अच्छे अशआर.
जवाब देंहटाएंअच्छी गज़ल
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