बस्तों और किताब ने मिलकर
बचपन खो डाला
माता-पिता के दबाव ने मिलकर
बचपन धो डाला
समाज के कुरीतियों ने तो
शोषण कर डाला
प्रशासन की अकर्मण्यता ने तो
सेंध लगा डाला
सरकार की ढुलमुल नीतियों ने तो
महंगाई कर डाली
विरोधियों की राजनीति ने तो
नक्सल बना डाला
पडोसी देश के हुज्जत ने तो
नीद उड़ा डाली .
कोई आश्चर्य नही की इन सबने
देश बेच डाला
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Badi Achhi baat likhi hai aapne. In sabne desh bech dala vaali line kuch jam nahi rahi.
जवाब देंहटाएंसमसामयिक विषयों पर एक अच्छी रचना..आभार !!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता...
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'पाखी की दुनिया' में आपका स्वागत है.
bahoot khoob...
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