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जुलाई 23, 2010

मकड़ी और मक्खी

        (मकडी)
धागा  बुना   अंगना में मैंने
जाल बुना कल रात मैंने 
         जाला झाड साफ़ किया है वास *
आओ ना मक्खी मेरे घर
आराम मिलेगा बैठोगे जब 
         फर्श बिछाया देखो एकदम खास *
         (मक्खी)
छोड़ छोड़ तू और मत कहना 
बातों से तेरा मन गले ना 
         काम तुम्हारा क्या है मैं सब जानूं* 
फंस गया गर जाल के अन्दर 
कभी सुना है वो लौटा फिर 
         बाप रे ! वहाँ घुसने की बात ना मानूं *
           (मकड़ी)
हवादार है जाल का झूला 
चारों ओर  खिडकी है खुला 
          नींद आये खूब आँखे हो जाए बंद *
आओ ना यहाँ हाथ पाँव धोकर 
सो जाओ अपने पर मोड़कर 
          भीं-भीं-भीं उड़ना हो जाए बंद *
            (मक्खी)
ना चाहूँ मैं कोई झूला 
बातों में आकर गर स्वयं को भूला 
          जानूं है प्राण का बड़ा ख़तरा *
तेरे घर नींद गर आयी 
नींद से ना कोई जग पाए 
         सर्वनाशा है वो नींद का कतरा *
             (मकड़ी)
वृथा तू क्यों विचारे इतना 
इस कमरे में आकर देख ना 
         खान-पान से भरा है ये घरबार *
आ फ़टाफ़ट डाल ले मूंह में 
नाच-गाकर रह इस घर में 
         चिंता छोड़ रह जाओ बादशाह  की तरह *
              (मक्खी)
लालच बुरी बला है जानूं 
लोभी नहीं हूँ ,पर तुझे मैं जानूं 
          झूठा लालच मुझे मत दिखा रे  *
करें क्या वो खाना खाकर 
उस भोजन को दूर से नमस्कार 
          मुझे यहाँ भोजन नही करना रे *
              (मकडी)
तेरा ये सुन्दर काला बदन 
रूप तुम्हारा सुन्दर सघन 
          सर पर मुकुट आश्चर्य से निहारे  *
नैनों में हजार माणिक जले 
इस इन्द्रधनुष पंख तले 
          छे पाँव से आओ ना धीरे-धीरे *
            (मक्खी)
मन मेरा नाचे स्फूर्ति से 
सोंचू जाऊं एक बार धीरे से 
            गया-गया-गया मैं बाप रे!ये क्या पहेली *
ओ भाई तुम मुझे माफ़ करना 
जाल बुना तुमने मुझे नहीं फसना 
          फंस जाऊं गर काम नआये कोई सहेली *
              (उपसंहार)
दुष्टों की बातें होती चाशनी में डुबोया 
आओ गर बातों में समझो जाल में फंसाया 
          दशा तुम्हारा होगा ऐसा ही सुन लो *
बातों में आकर ही लोग मर जाए 
मकड़जीवी धीरे से समाये 
           दूर से करो प्रणाम और फिर हट लो * 


कवि सुकुमार राय द्वारा रचित काव्य का अनुवाद 


          





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