अकेले चले थे , तन्हां सफ़र था
मुसाफिर मिले जो... राहें जुदा थी
लम्बी सी सड़कें और दिन पिघले-पिघले
तन्हाई के जाने ये आलम कौन सी ?
पेड़ों के कतारों की बीच की पगडण्डी
कब से न जाने खड़ी है अकेली
सुनसान राहें... न क़दमों की आहट
इंतजार है उसको भी न जाने किसकी !!
बस सूखे पत्तों की गिरने की आहट
बारिश की टप-टप चिड़ियों की चहचहाहट
दाखिल हो जाता हूँ अक्सर इस सफ़र में
है झींगुर के शोर औ पत्तों की सरसराहट !!
कब तक मैं समझाऊँ इस तन्हां दिल को
नज्मों से बहलाए - फुसलाये पल को
तन्हाई का साथ छुडाना जो चाहूँ
भीड़ अजनबियों का नहीं भाता है मन को !!
गर कोई बिखरी सी नज़्म मिल जाए
कतरन-ए -ख्वाव पर पैर पड़ जाए
बज़्म-ए-याद से कुछ यादें दरक जाए
तनहा जीने का फिर सबब मिल जाए !!
तन्हाई का साथ छुडाना जो चाहूँ
भीड़ अजनबियों का नहीं भाता है मन को !!
गर कोई बिखरी सी नज़्म मिल जाए
कतरन-ए -ख्वाव पर पैर पड़ जाए
बज़्म-ए-याद से कुछ यादें दरक जाए
तनहा जीने का फिर सबब मिल जाए !!
अच्छी अभिव्यक्ति दी है - अक्सर ही छा जाती है ये उड़ी-उड़ी-सी मनोदशा!
जवाब देंहटाएंभावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....
जवाब देंहटाएंगज़ब के एहसास पिरोये हैं इस लाजवाब नज़्म में ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर, उम्दा नज्म ,,,बधाई,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : जिन्दगी.
वाह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंस्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएँ
अत्यन्त हर्ष के साथ सूचित कर रही हूँ कि
जवाब देंहटाएंआपकी इस बेहतरीन रचना की चर्चा शुक्रवार 16-08-2013 के .....बेईमान काटते हैं चाँदी:चर्चा मंच 1338 ....शुक्रवारीय अंक.... पर भी होगी!
सादर...!
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (19.08.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें .
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति.. हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} के शुभारंभ पर आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट को हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल में शामिल किया गया है और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा {रविवार} (25-08-2013) को हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें। कृपया पधारें, आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | आपके नकारत्मक व सकारत्मक विचारों का स्वागत किया जायेगा | सादर .... Lalit Chahar
जवाब देंहटाएंबहुत खूब लिखा है..
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