बादलों की गर्जना में
नीर भी है पीर भी
कौन से वो आंसू है वो !
खार भी है सार भी।।
वेदना के अश्रु है या
शबनमी बूंदों का खेल
या धरा पर उतरती है
झर झर झरनों का बेल ॥
गात,पात,घाट,बाट
प्लावित तन छलछलात
विरही हृदय छटपटाये
प्रणय सुर स्मरण आये ॥
सप्तरंग रंग बिखेरे
सावन संग-संग ले फेरे
ग्रीष्म-ताप भी भीगे रे
झूम के सावन आये रे ॥
खार भी है सार भी।।
जवाब देंहटाएंसत्य है!
भावो का सुन्दर समायोजन......
जवाब देंहटाएंनमस्कार आपकी यह रचना आज शुक्रवार (06-09-2013) को निर्झर टाइम्स पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना !
जवाब देंहटाएंlatest post: सब्सिडी बनाम टैक्स कन्सेसन !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति। ।
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