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सितंबर 05, 2013

सावन आयो रे.....















बादलों की गर्जना में
नीर भी है पीर भी
कौन से वो आंसू है वो !
खार भी है सार भी।। 

वेदना के अश्रु है या
शबनमी बूंदों का खेल
या धरा पर उतरती है
झर झर झरनों का बेल ॥  

गात,पात,घाट,बाट 
प्लावित तन छलछलात 
विरही हृदय छटपटाये 
प्रणय सुर स्मरण आये ॥ 

सप्तरंग रंग बिखेरे 
सावन संग-संग ले फेरे 
ग्रीष्म-ताप भी भीगे रे  
झूम के सावन आये  रे ॥ 



6 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्कार आपकी यह रचना आज शुक्रवार (06-09-2013) को निर्झर टाइम्स पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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