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जुलाई 24, 2013

उत्तराखंड की त्रासदी पर


बादलों की गर्जना से 
     घटाएं उमड़-घुमड़ गयी,
चमन से सेहरे बने 
     धरा को देखती रही  !!

 फुहार जब कहर बना 
     जीवन लीलता गया ,
चंद पलों में हज़ार साँसें 
     सिसकियों में बदल गया  !!

 कहर बन बरस मेघ 
     लाशें निगलता रहा ,
नियति का खेल कैसा!
     शहर उजड़ता रहा !!

तलाश है ज़िन्दगी को 
    साँसों का डोर थाम  ले ,
सूनी-नंगी सड़कों पर फिर 
     कदमों को पहचान ले   !! 

नए पत्तों की आहट अब 
     जाने कब सुनाई दे ,
तारे जड़े आसमां औ'
     चाँद  कब दिखाई दे !!

7 टिप्‍पणियां:


  1. ापने लिखा... हमने पढ़ा... और भी पढ़ें...इस लिये आपकी इस प्रविष्टी का लिंक 26-07-2013 यानी आने वाले शुकरवार की नई पुरानी हलचल पर भी है...
    आप भी इस हलचल में शामिल होकर इस की शोभा बढ़ाएं तथा इसमें शामिल पोस्ट पर नजर डालें और नयी पुरानी हलचल को समृद्ध बनाएं.... आपकी एक टिप्पणी हलचल में शामिल पोस्ट्स को आकर्षण प्रदान और रचनाकारोम का मनोबल बढ़ाएगी...
    मिलते हैं फिर शुकरवार को आप की इस रचना के साथ।



    जय हिंद जय भारत...


    मन का मंथन... मेरे विचारों कादर्पण...


    जवाब देंहटाएं

  2. सुन्दर ,सटीक और सार्थक . बधाई
    सादर मदन .कभी यहाँ पर भी पधारें .
    http://saxenamadanmohan.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं
  3. अभी कहाँ छुटकारा -मौसम फिर वैसा ही लग रहा है !

    जवाब देंहटाएं

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