उन आँखों की कशिश को महसूस किया था मैंने
नर्म प्यार का अहसास था मुझे
जो गीत गुनगुनाया था तुमने
वो बोल भी भुलाया न गया मुझसे
आसमान से जो बूंदे गिरी थी वो
मुझे छूकर यही कह रही थी
चलो भीगते हुए उन लम्हों को पकड़ ले
कहीं छूट न जाये वो बचपन के रिश्ते
वो पत्थरों से खेलना ....कागज़ की कश्ती
में खुद को बहाना
चोर निगाहों से तुम्हारा मुझे निहारना
दुपट्टे से गीले बालों को पोंछना
फिर अगले दिन का वादा लेकर
आँखों से ओझल हो जाना
कुछ भी भुलाया नहीं गया मुझसे
आज फिर से आसमान पिघल रहा है
कांच की बूँदें ज़मीन पे बिखरी पड़ी है
कागज़ की तमाम कश्तियाँ किनारे
ढूँढती हुई राह भटक गयी
वो धूप का कोना भी फिर से सतरंगी हो रहा है
अक्सर वो धुन जहन में आ जाता है
जो तुमने कभी गुनगुनाया था
केवल मेरे लिए
बहुत सुंदर हृदयस्पर्शी भाव .....
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा,सुंदर सृजन,,,वाह !!!
जवाब देंहटाएंRECENT POST : अभी भी आशा है,
वो बोल भी भुलाया न गया मुझसे
जवाब देंहटाएंआसमान से जो बूंदे गिरी थी वो
मुझे छूकर यही कह रही थी
चलो भीगते हुए उन लम्हों को पकड़ ले
कहीं छूट न जाये वो बचपन के रिश्ते
bahut bhavnatmak .sundar
बहुत कोमल एहसास!
जवाब देंहटाएंkuchh bhi to nhi bhoole !
जवाब देंहटाएंbehtreen/
वाह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंदिल को छूते हुए .. गुदगुदाते हुए निकल जाती है ये रचना ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही गहरे एहसास लिए ...
बहुत ही खुबसूरत और प्यारी रचना..... भावो का सुन्दर समायोजन......
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 18/07/2013 के चर्चा मंच पर है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
धन्यवाद
सुंदर रचना....
जवाब देंहटाएंसाधुवाद योग्य रचना....
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