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मार्च 29, 2013

जीने को बहुत है


नज़र के नजराने से न फेर यूं नज़र
नज़र के नज़राने के नज़रदार बहुत है

उमंग-ए-दिल पर सैलाब-ए-आंसू मत फेर
दिल के दरख्तों में बज़्म-ए-ग़म बहुत है

दर्द-ए-दिल को नज़्म में बयाँ ग़र करूँ
नज़्म में समाने को आखर बहुत है

तड़पती हूँ रात भर आहें भी भरती हूँ
पर हाय !ये गिनती के पल भी बहुत है

मुस्कुराना यारब से बा-अदब था सीखा
पर झूठी मुस्कानों की बे-अदबी बहुत है

लफ़्ज़ों के दामन ग़र आख़र से भर दूं
इस दर्द-ए-दिल की रुसवाइयां बहुत है

वक़्त जो भी गुज़रे है तेरे बिना मेरे
संग बिताए जो पल जीने को बहुत है

अनामिका

7 टिप्‍पणियां:

  1. दर्द-ए-दिल को नज़्म में बयाँ ग़र करूँ
    नज़्म में समाने को आखर बहुत है
    .....सच जितना गहरा दर्द उसका उतना बड़ा आकार .
    बहुत खूब..

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत ही सुन्दर भाव ,बेहतरीन प्रस्तुति.

    जवाब देंहटाएं

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