वो चांदनी रात हम और तुम
फूलों से सजी बगिया उपवन
वो सपनो का झूला वो सजन का साथ
उन यादों को भूल न पाया ये मन !!
नभ पर था तारों की बारात
मन में बसी प्रेम का प्रभात
वो जगती आँखें और हमारा प्रेमालाप
रहता थे हम प्रेम-मगन न भूला ये मन !!
वो पूनम की चाँद था हाथों में हाथ
वो चांदनी रात में चले थे साथ
छेड़ गए यूं मन वीणा के तार
कहाँ भूल पाया ये मन ??
अब तो न वो दिन न वो रात
एकाकी जीवन और विरह का भार
दिया था तुम्हे जो प्रेम का उपहार
कैसे बिछ्डेगा तुमसे ये मन??
बहुत सुन्दर रचना..
जवाब देंहटाएंकोमल भाव लिए...:-)
sundar bhavpurna rachna
जवाब देंहटाएंबढ़िया,
जवाब देंहटाएंजारी रहिये,
बधाई !!
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार 25/12/12 को चर्चाकारा राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है ।
जवाब देंहटाएंप्यार भरे मन की बातें
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रयास, बहुत बहुत बधाईयाँ ..सार्थक सकारात्मक सृजन मित्र ..
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब वाह!
जवाब देंहटाएंआप शायद इसे पसन्द करें-
ऐ कवि बाज़ी मार ले गये!
bahut sunder.
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति....
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