पर आंच न आया तुम पर -
रहे बेखबर !
सूखे पत्ते सी फडफडाती रही यूं ही
और गीली आँखों ने चाँद -
सुखाया रातभर !
बुझी हुई आँखों से ज़िन्दगी को देखा इस कदर
चलती हुई ज़िन्दगी को -
पकडती रही बस रातभर !
काँटों से ख़्वाबों ने आँखों को खूब चुभोया है
आंसुओं ने सहलाया है पर -
उनींदे आँखों को रातभर !
शायद ज़िन्दगी की यही चाल है ---पता नहीं
आंसूं और ख्वाब ने हंगामा -
मचाया है रातभर !
शायद ज़िन्दगी की यही चाल है ---पता नहीं
जवाब देंहटाएंआंसूं और ख्वाब ने हंगामा -
मचाया है रातभर,,,
बेहतरीन प्रस्तुति ,,,,
resent post काव्यान्जलि ...: तड़प,,,
जानदार प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंNICE हम हिंदी चिट्ठाकार हैं
जवाब देंहटाएंbahut behtreen srijan , prvahmay, bhavpoorn .
जवाब देंहटाएंसूखे पत्ते सी फडफडाती रही यूं ही
जवाब देंहटाएंऔर गीली आँखों ने चाँद -
सुखाया रातभर !
उफ़ मोहब्बत ने क्या क्या रंग दिखाया ज़िन्दगी भर
kya baat hai nice poem
जवाब देंहटाएंखुबसूरत अभिवयक्ति......
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएं:-)
अहरे भाव लिए ... लाजवाब रचना ..
जवाब देंहटाएंभावों का सुंदर चित्र.....बधाई
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