गुज़र गए है दिन इस कदर तन्हाँ
साथी न कोई-बस मैं और ये जहां
हिसाब रखा नहीं उन तन्हाँ पलों का
तन्हाँ सफ़र को गुज़ारा है तन्हाँ
सूने कमरे सूनी दीवारों ने सुनी
मेरी वो दास्ताँ जो मैंने अकेले में बुनी
एक हसीं हमसफ़र के साथ का सफरनामा-
सुनाना था ज़िन्दगी को ...पर ज़िन्दगी से ठनी
रब के किस साजिश के तहत मैं तन्हाँ इस कदर
रिश्तों से महरूम खाया ठोकर दर-बदर
बेहतरीन प्रस्तुति वाह!
जवाब देंहटाएंBahut dard hai aapki kavitha mein :(
जवाब देंहटाएंKeep Blogging!
वाह! अच्छा लिखा है!
जवाब देंहटाएंsundar rachna..aabhar
जवाब देंहटाएंPain very beautifully penned!!
जवाब देंहटाएंदिल को छू हर एक पंक्ति...
जवाब देंहटाएंरब के किस साजिश के तहत मैं तन्हाँ इस कदर
जवाब देंहटाएंरिश्तों से महरूम खाया ठोकर दर-बदर
बहुत बढिया।
खूबसूरत भाव
जवाब देंहटाएंsundar abhivyakti..
जवाब देंहटाएंUdaas rachna hai...Subah jaroor aayegi subah ka intezaar kar...
जवाब देंहटाएंशब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भावनायें और शब्द भी.बेह्तरीन अभिव्यक्ति!शुभकामनायें.
आपका ब्लॉग देखा मैने और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.
तन्हाई के इस सफर को लाजवाब शब्दों में बाँधा है आपने ...
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